कुरुक्षेत्र । देवशयनी एकादशी के साथ आज से चातुर्मास शुरू हो रहे हैं. इनका समापन 15 नवंबर को होगा. बता दें कि चातुर्मास में शादी, विवाह, मुंडन आदि जैसे कार्य नहीं किए जाते हैं. वही कॉस्मिक एस्ट्रो के डायरेक्टर व श्री दुर्गा देवी मंदिर पिपली के अध्यक्ष सुरेश मिश्रा ने बताया कि 20 जुलाई मंगलवार अनुराधा नक्षत्र, शुक्ल युग को आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का विशेष महत्व है.
आज से शुरू हो रहा है चातुर्मास
इस तिथि से जगत के संचालक भगवान विष्णु 4 महीने के लिए शयन करने चले जाते हैं. इस स्थिति से चार महीनों तक देवताओं की रात्रि होती है. देवता शयन करने जाते हैं, इसलिए आषाढी एकादशी को देवशयनी एकादशी और हरी शयनी एकादशी आदि के नामों से जाना जाता है . देवताओं के योग निद्रा में होने की वजह से इन 4 महीनों में कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किए जाते. आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी से श्रावण, भाद्रपद,आश्विन, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की देव प्रबोधिनी एकादशी के समय को चतुर्मास कहा जाता है. चातुर्मास हरि प्रबोधिनी एकादशी 15 नवंबर 2021 तक रहेगा. चातुर्मास में भगवान शिव जगत के संचालक और संहारक दोनों की भूमिका में होते हैं.
देवशयनी एकादशी का महत्व
जो भी व्यक्ति सच्चे हृदय से देवशयनी एकादशी का व्रत करता है और भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा करता है, उस व्यक्ति के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं. साथ ही उसे कष्टों से भी मुक्ति मिल जाती है. भगवान श्री हरि उसकी मनोकामना की पूर्ति करते हैं. मृत्यु के बाद उसकी आत्मा को श्री हरि के चरणों में स्थान प्राप्त होता है. भगवान विष्णु के विश्राम करने के 4 महीने बाद तक कोई मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं. इस समय तीर्थ स्थान, सत्संग,योग, प्राणायाम, ध्यान, कीर्तन भगवान शिव की पूजा अर्चना होती है, लेकिन कोई मगल कार्य नहीं किया जाता. बता दे कि देवउठनी एकादशी का व्रत 15 नवंबर 2021 को है. इस दिन से चातुर्मास का समापन हो जाएगा.