करनाल । कोरोना की दूसरी लहर में हालात सामान्य होने के बाद एक बार फिर प्रसिद्ध तीर्थ सीता मंदिर की स्थिति में सुधार की कवायद जोर पकड़ रही है. बता दें कि इस पावन स्थल को प्रस्तावित राम मार्केट में शामिल करने के प्रयास किए जा रहे हैं ताकि यहां देश-विदेश से लोग तीर्थाटन करने आए. पिछले साल पूर्व मंत्री डॉक्टर संजय पासवान ने मंदिर का दौरा किया था, लेकिन कोरोना की वजह यह कार्य तेजी नहीं पकड़ पाया.
जानिये सीता माई मंदिर से जुड़े कुछ रहस्य
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के चरित्र में माता सीता का भी विशेष महत्व है. इसलिए उनके नाम का स्मरण भी भक्त श्री राम के नाम से पूर्व करते हैं. रामायण के इसी प्रेरक पात्र माता सीता के प्रति अन्नयन आस्था का प्रतीक है, करनाल से करीब 25 किलोमीटर दूर स्थित प्रसिद्ध सीता माई मंदिर. बता दें कि ऐसी मान्यता है कि रामायण काल में सीता माता यही धरती में समाई थी. 14 वर्ष के वनवास के बाद भगवान राम के आदेश पर लक्ष्मण ने सीता को जिस जंगल में छोड़ा था उसका नाम लाडवन था.
इसे घने जंगल की पश्चिम दिशा में महर्षि बाल्मीकि आश्रम अवस्थित था. जहां सीता माता अपने वनवास के दौरान रहती थी. ऐसी मान्यता है कि जिस स्थान पर सीता माता भूमि में समाई थी उसी जगह सीता माई मंदिर निर्मित किया गया है. इसी वजह से यहां स्थित एक गांव का नाम भी सीतामाई रखा गया है. यह मंदिर अत्यंत प्राचीन है और इससे जुड़ी हुई अनेक कहानियां और किससे आसपास के क्षेत्रों में प्रचलित हैं. यह भी कहा जाता है कि एक समय किसी धनाढ्य व्यक्ति के कुछ ऊंट खो गए थे, बहुत ढूंढने के बाद भी जब उठ नहीं मिले तो उन्होंने इस स्थान पर शरण ली.
तभी यहां माता सीता ने छोटी कन्या के रूप में उन्हें दर्शन दिए और यहां मंदिर बनवाने के लिए कहा. इसके बाद माता अकस्मात अंतर्ध्यान हो गई. रात को विश्राम करने के बाद जब वह सुबह उठे तो उन्होंने देखा कि ऊट उनके पास ही है. इसे माता का चमत्कार मानते हुए उन्होंने मंदिर निर्मित करवाया. इसी प्रकार यह तथ्य भी प्रमुखता से उभर कर सामने आता है कि वस्तुत: कश ध्वज की पुत्री वेदवती ही रामायण काल की सीता थी. ऐसी मान्यता है कि रावण तप मे लीन एक कन्या के पास पहुंचा और उसे तप का उद्देश्य पूछा. तब कन्या ने अपना परिचय कुशध्वज की पुत्री वेदवती के रूप में दिया.